राकेश उस दिन पैदा हुआ था जिस दिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री चीन में जाकर तिब्बत पर चीन का अधिकार घोषित कर रहे थे और चीन सिक्किम पर भारत का अधिकार
वर्ष था 2003.
आज की भरी गर्मी में जब बारिश के इंतजार में लोग अपने अपने खेतों में अगली फसल के लिए तैयारी कर रहे थे राकेश के पिताजी ने उसे बताया कि बेटा आज तुम पूरे 18 के हो गए हो.
अब तुम्हारे हाथ में है इस घर की और खेत की बागडोर.
राकेश को याद था कैसे पिछले वर्ष के सूखे में जो उसके खेत को छोड़कर शायद किसी के यहां नहीं पड़ा था क्योंकि उसके हर साल आने वाली फसल आधी से भी कम रह गई थी
और क्या वह कभी भूल सकता है, कैसे उसकी बहनों को; दूसरों की मजदूरी के लिए जाना पड़ा था?
कैसे उसके महाविद्यालय में प्रवेश की सारी आशाओं पर पानी फिर गया था; जबकि राकेश के बाकी साथी अभी ऊंची कक्षा में पढ़ने गए हुए थे.
राकेश ने सोचा कि कोई बात नहीं, गांव के अध्यापक, पटवारी, ग्राम सेवक जितना तो वह पढ़ ही गया है.
क्यों ना कुछ ऐसी नौकरी ढूंढ ले, जिसमें खेती जैसी कड़ी मेहनत करने पर; खेती से ज्यादा कमाई हो सके.
उसे अपनी बहन की शादी भी तो करना है धूमधाम से. जैसे पिछले साल उनके सरपंच साहब के बेटे की बरात में देखने को मिली थी.
क्या क्या ठाठ दार आओभगत हुई थी? कैसे आई फोन मिला था उसकी विदाई में? इधर राकेश यह सब सोच ही रहा था कि पड़ोस के गांव का परेश गांव में आकर रात भर चौपाल पर बेरोजगार लड़कों के आवेदन पत्र भरने में लगा था
उस दिन गांव की चौपाल पर परेश से मुलाकात ने राकेश को प्रेरित किया पूरी पुस्तिका पढ़ने को।
और जब उसे समझ आया यह तो उसके स्वयं के हाथ में है, कि वह कितना समृद्ध बनना चाहता है; तो तुरंत उसने परेश को फोन किया।
परेश ने उसे बताया कि यदि तुम आगे बढ़ना चाहते हो अपनी समृद्धि के लिए; तो यहां मेरे पास एक छोटी सी पुस्तक है, तुम उसको ले जाओ और पढ़ डालो उसे। राकेश ने परेश से "देवो भव एक" नाम की पुस्तक खरीद ली।
कड़क दुपहरी में देर के प्यासे को पानी मिले तो वह जैसे पानी पीता है; वैसे ही राकेश ने किताब को देखते ही देखते पढ़ डाला।
पढ़ने के बाद उसने फिर परेश को फोन किया। अब क्या करें?
परेश ने राकेश से पूछा, पुस्तक कैसी लगी?
राकेश का जवाब था; भेजा झनझना गया।
परेश बोला, अब किसी और का भेजा झनझना दो।
राकेश निकल पड़ा अपनी पढ़ी-पढ़ाई किताब लेकर, जा पहुंचा सरपंच साहब के घर, अपनी किताब पकड़ा दी उनके हाथ में और बोला जरा इसे देखिये।
सरपंचजी ने पुस्तक की कीमत निकालकर; राकेश के हाथ पर रख दी।
राकेश की कान में अभी भी परेश की आवाज झनझना रही थी।
वह पहुंच गया फिर से परेश के पास, एक और किताब लेने।
कुछ ही दिनों के अंदर राकेश ने कई और लोगों का भेजा झनझना दिया।
उसके बाद एक दिन उसके मोबाइल में sms आगयाl
अपने इलाके में होने वाले "प्रतिभा, रुझान और योग्यता शिविर" के बारे में।
जगह के बारे में परेश ने उसे पहले ही बता दिया था, और sms में बताये गये दिन; वह पहुंच गया, पूर्व निर्धारित जगह पर।
वहां जाकर वह देखता क्या है, आजू-बाजू के गांव के ढेरों लड़के; मौजूद हैं वहां।
सुबह से शाम तक, एक दिन के अंदर; जो उसने देखा-सीखा, वह उसकी अभी तक की पूरी जिंदगी के अनुभव से; कई गुना ज्यादाह था।
शाम को गांव लौट कर, चौपाल पर; और फिर बीतने लगे दिन, पहले जैसे ही।
समय के साथ राकेश भूल गया कैंप की बातें।
पर एक दिन डाकिया एक लिफाफा उसके घर पकड़ा गया।
घर में अकेला राकेश ही पढ़ा-लिखा था।
जब चौपाल से आकर राकेश ने लिफाफा देखा तो उसका कोतुहल जागा। यह क्या है? कहां से आया है?
राकेश ने कोतुहल पूर्वक सफाई से खोल डाला लिफाफा। और उसके अंदर देखता क्या है, सबसे ऊपर लिखा है ऑफर लेटर। नीचे पढ़ा तो उसे समझा, कि यह तो इको भारत से सालाना रुपये दस लाख पर रेजीडैंट एक्ज़्यूटिव की नौकरी का बुलावा आया है उसे।